Kaho hari! kahaan rahyo tav nyaay
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आत्मा जो कुछ चाहती है दूसरे से बस वही धर्म है, जैस हम दूसरों से चाहते हैं वो सच बोले, धोखा/छल कपट न करे, मदद करे
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शुद्ध आत्मा/ज्ञान जो कुछ कहे वो करना चाहिए वही धर्म अर्थात जो महापुरुष/ज्ञान कहे वो करना चाहिए
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बहुत सी बाते हम लोग जानते है लेकिन नहीं मानते, जैसे भगवान हमारे प्रतिक्षण के संकल्प नोट करता है जानते है लेकिन नहीं मानते
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जान लेने पर मान ले ये पक्का नहीं लेकिन मान लेने पर जान लिया है ये पक्का है
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मित्र तब होता है कोई जब हमारा कोई स्वार्थ अवशिष्ट हो तब हम दोस्ती करते है कहीं
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जो हमारे स्वार्थ को कोई नष्ट करे तो वो शत्रु
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भगवान सदा परिपूर्ण हैं स्वयं सिद्ध है माने जिसको बाहर से, किसी से, कहीं से, कभी भी कुछ नहीं चाहिए इसलिए कहीं राग नहीं कहीं द्वेष नहीं
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किसी वर्क के करने के पहले 1 रीजन/उद्देश्य आता है सामने तब कोई कर्म करते हैं
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जितनी लिमिट की स्पिल्चुअल पॉवर होगी उतनी लिमिट में जब तक कोई गड़बड़ी(अपमान/दुर्वचन) रहेगी तो उसको सह लेगा और जब उस लिमिट से बाहर कोई चीज आएगी तो फिर कंट्रोल से बाहर हो जाएगा
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योगक्षेम में सबसे इंपोर्टेंट बात भूत काल के अनंत पाप हैं उसको माफ कर देना + अगले अनंतकाल का ठेका
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योग माने जो कुछ भी हमको नहीं मिला ज्ञान आनन्द वो सब स्वयं बिना मांगे देंगे
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क्षेम माने जो कुछ वो देंगे उसकी सुरक्षा भी करेंगे यानि वो छीनने नहीं पाएगी कभी, ज्ञान आनन्द माया निवृत्ति सदा मिला रहेगा
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कोई भी मायाधीन पर्सनालिटी न्याय नहीं कर सकती, जैस 100,500,1000,10000 का घुस कोई नई लेगा लेकिन १ करोड़ की बात आई तो ले लेगा, १ लिमिट के बाद सब फेल हो जातें हैं
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माया को जीतने के लिए कोई सामान कोई कहीं से लाया है उपहार में, किसी ने कीमत चुकाई है क्या, जितने भी संत हुए है हमारे यहाँ अंगूठा छाप यही निहाल किए है हम सरंडर करतें हैं
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सरंडर माने क्या होता है, मतलब हम अपाहिज आलसी बन गए लो हाँथ पैर फैला दिया, और क्या है सरंडर माने, हाथ पैर फैला दिया शरणागत हो गए हम कुछ नहीं करते